महान् बुद्ध पास नहीं जाने देता था। उसे भय था कि अब बातचीत से उस महान प्रात्मा को बहुत कष्ट होगा, पर गौतम इस जिज्ञासु को भी लौटाना नहीं चाहता था जोकि जिज्ञासा के लिए पाया हो । गौतम ने उसे अपने पास बुलाया और उसे बुद्धों के तत्त्वों को समझाया। सुभद्र इससे बहुत प्रसन्न हुआ और वह बुद्ध का शिष्य बन गया। इसके कुछ ही क्षण बाद उस महान पुरुप ने यह उपदेश देते हुए, इस जीवन को त्याग दिया-समस्त एकत्रीभूत वस्तुओं का विनाश अवश्यंभावी है, परिश्रम के साथ अपनी मुक्ति पाने का यन करो।' कुशीनगर में, वहाँ के अधिकारी मल्लों ने गौतम के शरीर का दाह किया और उसकी अस्थियों को अपने किले में, सुरक्षित रक्सा । वहाँ पर ७ दिन तक नाचने और गाने का उत्सव मनाया गया। मालाओं तथा सुगन्धियों से उसका सत्कार किया गया । गौतम की अस्थियों के भाग किये गा । एक भाग मगध के सम्राट अजातशत्रु ने पाया और उसपर राजगृह में एक इमारत बनवाई गई । वैशाली के लिच्छवियों ने दूसरा भाग पाया और वैशाली में उसपर एफ इमारत बनवाई गई। इसी प्रकार कपिल- वस्तु के शाक्यों ने, अलकम्पा के कोलियों ने, रामग्राम के कोलियों ने, पावा के मल्लों ने, और कुशीनगर के मल्लों और ब्राह्मण-वंश के दीपक ने उसका एक-एक भाग पाया और उन सब पर, उन सबों ने इमारतें बनवाई। मोरियन लोगों ने उस चिता-भस्म पर एक इमारत वनवाई और ब्राह्मण दोन ने, उस पात्र पर जिसपर बुध की देह जलाई गई थी, हमारन बनवाई।
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