२६६ दो अमर चीनी बौद्ध-भिक्षु बियाबान था, बस्तियाँ बहुत कम थी, जंगल-के-जंगल सुनसान और उजाड़ पड़े थे । यहाँ के लोग पीलापन लिये हुए काले थे। व कट्टर, जोशीले और विद्या प्रेमी थे । सैकड़ों प्राचीन मठ उजाड़ और खण्डहर हो गये थे । केवल ६० मठों में सन्यासी रहत थे । यहाँ पर १०० मन्दिर थे और उनके बहुत-से पूजने वाले थे। हुएनत्संग लिखता है--"नगर के पूर्व और पश्चिम और दो विशाल मठ हैं, जो पूर्व शिला और अपर शिला के नाम से विख्यात हैं इन मठों को किसी राजा ने बुद्ध के सम्मानार्थ बनवाया था। उस ने विशाल घाटी में गड्ढा बुदवाया, सड़कें बनवायी और पहाड़ी मार्ग खुलवाये थे। डा. फर्ग्युसन सन १७६६ में अमरावती में निकले हुए स्तूप के विषय में कहते हैं कि यहीं वह पश्चिमी मठ है। डा० वर्जेस मठ के पत्थरों पर खुद हुए लेखों के आधार पर इस स्तूप को दृसरी शताब्दी का निश्चित करते हैं। बड़े आन्ध्र देश के दक्षिण-पश्चिम में एक चीला का राज्य था जोकि ५०० मील के घर में था। यहाँ बस्ती थोड़ी थी, जंगल और उजाड़ होने के कारण डाकू यहाँ खूब लूट मचात थे। यहाँ के निवासी दुराचारी और निर्दय थे। इसके दक्षिण में द्राविड़ों का राज्य था। इसका घेरा १२०० मील का था। इसकी राजधानी विशाल 'काञ्चीपुर' थी। जो आज कल काञ्चीवरम के नाम से पुकारी जाती है। यहां पर १०० संघा- राम और १८,००० पुजारी थे।
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