२६७ दो श्रमरं चीनी बौद्ध भिक्षु में जंगली हाथी रहते थे । यहाँ के लोग यद्यपि जोशीले, उजडू और असभ्य थे, पर वे अपनी बात के पक्के और विश्वासपात्र थे। यद्यपि हुएनत्संग के समय में कलिंग की ऐसी दुरवस्था होगई थी, परन्तु पाठकों को स्मरण होगा कि मेगास्थिनीज के समय में कलिंग का राज्य एक प्रबल महा-साम्राज्य था । कलिंग का राज्य बंगाल से लेकर गोदावरी के मुहाने तक समस्त समुद्र तट तक फैला हुआ था। उसकी प्रबलता का स्मरण अब तक बना हुआ था। हुपन- त्संग कहता है- "प्राचीन काल में कलिंग राज्य की बस्ती बहुत धनी थी। लोगों के कन्धे एक-दूसरे से रगड़ खाते थे । रथ के पहिये की धुरी एक-दूसरे रथ की धुरी से टकराती थी।" यद्यपि अब कलिंग का प्रभुत्व नहीं रहा था, फिर भी यहाँ की जातियों में एक प्रकार की राजकीय एकता थी। कलिंग के उत्तर-पश्चिमी जंगलों और पहाड़ियों में होकर कोशल का मार्ग था, जो अाधुनिक बरार का देश है । इस देश का घेरा १००० मील और इसकी राजधानी का घेरा ८ मील था । यहाँ बस्ती बहुत धनी थी । यहाँ के लोग जोशीले, बहादुर, लम्बे, काले, कट्टर और सच्चे थे। उनमें से कुछ लोग हिन्दू और कुछ लोग बौद्ध थे। इन दक्षिणी कोशलों के सम्बन्ध में जिन्हें अवध के कोशलों से भिन्न समझना चाहिये, हुएनत्संग प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ- कार नागार्जुन और राजा सतह का वर्णन करता है, जिसने एक चट्टान को कटवाकर उसमें सङ्घाराम. बनवाया था। फाहियान
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