२६५ दोत्रमर चीनी बौद्ध भिक्षु 1 इन वृत्तान्तों से पाठकों को भली भांति ज्ञान हो गया होगा कि उस समय खास बंगाल (बिहार और उड़ीसा को छोड़कर) पाँच बड़े-बड़े राज्यों में विभाजित था। १-उत्तरी बंगाल में 'पुन्द्र-राज्य'। २-अासाम और उत्तर पश्चिम बंगाल में 'कामरुप-राज्य' । ३-पूर्वी बंगाल में 'समतत-राज्य ।४-दक्षिण-पश्चिमी बंगाल में 'ताम्रलिपि-राज्य' । और ५-पश्चिमी बंगाल में 'कर्णसुवर्ण- राज्य था । हुएनत्संग का उत्तरी भारतवर्ष का वृत्तान्त बंगाल के साथ समाप्त होता है। अब आगे हुएनत्संग दक्षिणी भारतवर्षका वर्णन करता है- उद्या अर्थात उड़ीसा का राज्य १४०० मील के घेरे में है। उसकी राजधानी श्राधुनिक जयपुर के पास पाँच मील के घेरे में थी। वहाँ की जमीन बड़ी ही उपजाऊ थी। उसमें सब प्रकार के अन्न, फल- फूल और बहुत से अद्भुत वृक्ष पैदा होते थे। परन्तु यहाँ के मनुष्य असभ्य थे । उनका रंग पीलापन लिए हुए काला था। यहाँ की भापा मध्य भारत से भिन्न थी। पर ये लोग बड़े विद्या-प्रेमी थे। जय बौद्ध-धर्म भारतवर्ष के अन्य स्थानों से उजड़ गया था तब यही देश उसकी रक्षा का स्थान था । यहाँ लगभग १०० संघाराम और १०,००० सन्यासी थे । यहाँ देव-मन्दिर सिर्फ ४० थे। उड़ीसा पहले ही तीर्थ स्थान हो गया था । यद्यपि वहाँ उस समय तक पुरी का मन्दिर नहीं बना था। इस देश की दक्षिण-पश्चिम सीमा पर थत एक बड़े पर्वत.पर 'पुष्पगिरी' नामक एक विशाल संघाराम था। कहते हैं कि इस संघाराम के पत्थर के स्तूप में एक अद्भुत
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