बुद्ध और बौद्ध-धर्म २६४ की पदवी थी । इसी राजा ने ही कन्नौज के प्रतापी महाराजा शीलादित्य से हुएनत्संग का परिचय कराया था। कामरूप के दक्षिण में समतन या पूर्वी-बंगाल था। इस राज्य का घेरी ६०० मील था। यहाँ की राजधानी ४ मील के घेरे में थी। यहाँ के लोग नाटे, काले, बलिष्ट, विद्यानुरागी थे। ये बातें पूर्वी- बंगाल के लोगों में आज तक पाई जाती हैं । यहाँ ३० संघाराम और दो हजार संन्यासी थे। मन्दिर लगभग १०० थे, नंगे निम्रन्थ असंख्य थे। इसके बाद हुएनत्संग नाम्रलिप्त देश ( तुमुलुक देश) में गधा जिसे कि आज कल दक्षिण पश्चिमी बंगाल कहते हैं और जिसमें आधुनिक मिदनापुर भी सम्मिलित है । यह राज्य ३०० मील के धेरे में था, इसकी राजधानी एक बन्दरगाह था । यहाँ के लोग बलिष्ठ, फुर्तील, शूरवीर और साथ-ही-साथ जल्दबाज थे । यहाँ समुंद्र कुछ देश के भीतर घुस आया था। यहाँ हीरे, मोती, रन आदि अमूल्य वस्तुएँ एकत्रित होती थीं । यहाँ १० संघाराम और ५० देवमन्दिर थे। .' इसके बाद हुएनत्संग 'फर्ण सुवर्ण' का वर्णन करता है जोकि आजकल पश्चिमी-बंगाल और मुर्शिदाबाद समझा जाता है। इसी देश के राजा शशांक ने कन्नौज के राजा शीलादित्य के वड़े-भाई को हराया और मार डाला था। इस राज्य का घेरा ३०० मील था। यहाँ के लोग सुशील, समृद्ध और विद्या-प्रेमी थे।. यहां १० संघाराम और ५०, देव मन्दिर थे।
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