बुद्ध और बौद्ध-धर्म २५० में अपना अधिकार जमाया। इस भयंकर मिहिरकुल ने ५ खण्डों में पुजारियों तथा संघारामों को नष्ट करने की आज्ञा दी, जिससे उसका नामोनिशान भी न रहे, और उसने बौद्ध-धर्म के अन्त करने का निश्चय किया । इस प्रबल राजा ने मगध के राजा बाला- दित्य पर आक्रमण किया पर वहाँ वह पकड़ा गया और अपमान- पूर्वक फिर छोड़ दिया गया। वहाँ से वह काश्मीर गया और वहाँ राजद्रोह पैदा करके वहाँ के राजा को मारकर काश्मीर की गद्दी पर म्वयं बैठ गया। उसने गान्धार को विजय करके वहाँ के राजवंश को जड़ से उखाड़ डाला । बौद्ध-धर्म के स्तूपों और संघारामों को तहस-नहस कर डाला । इस अवसर पर उसने सिन्धु नदी के तट पर तीन लाख मनुष्यों का वध किया। इसमें शायद कुछ अत्युक्ति हो, पर यह सिद्ध है कि मिहिरकुल बौद्धों का प्रबल विरोधी था। हुएनत्संग सतलज के देश को देखकर बहुत प्रसन्न हुश्रा । वह लिखता है-"इस देश का घेरा ४०० मील और इसकी राजधानी का साढ़े तीन मील है। इस देश में अन्न, जल, सोना, चाँदी और रत्न आदि बहुतायत से पैदा होते हैं । यहाँ के लोग बड़े सदाचारी, नम्र, प्रसन्न, पुण्यात्मा और बौद्ध-धर्म पर विश्वास रखने वाले हैं। परन्तु संघारामों में बहुत कम पुजारी रहते हैं। मथुरा के देश का घेरा एक हजार मील है और यहाँ की राजधानी का घेरा चार मील है। यहाँ की जमीन बड़ी' उपजाऊ है। यहाँ के लोग सुशील, नम्र, धर्म-प्रेमी और विद्या प्रेमी हैं। यहाँ बीस संघारामों में लग- भग २००० पुजारी रहते हैं । वृत्त के तीनों महीनों यानी पहले,
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