२४१ दो अमर चीनी बौद्ध भिक्षु फाहियान संकाश्य से होता हुआ तत्कालीन गुप्तों की महान् राजधानी कन्नौज में आया था। उसने वहाँ के सिर्फ दो मठों के विपय में लिखा है। फिर वह कौशलों की प्राचीन श्रावस्ती में गया पर अब वह उजड़ चुकी थी । वहाँ सिर्फ दो सौ घर थे, पर जेत- वन की स्वाभाविक सुन्दरता ज्यों-की-त्यों विद्यमान थी, जहाँ बहुधा बुद्ध उपदेश दिया करते थे। कुख, गुलाब तथा असंख्य रंग-बिरंगे फूलों से सुशोभित उस विहार के सन्यासियों ने फाहियान और उसके मित्र के आगमन को सुनकर कहा-"वड़ा आश्चर्य है कि पृथ्वी की सीमा-प्रदेश के लोग धर्म की खोज की अभिलापा से इतनी दूर आते हैं।" गौतम की जन्म-भूमि कपिलवस्तु के विषय में फाहियान ने लिखा है- "इस नगर में न तो कोई राजा है और न प्रजा। उसमें सन्यासियों और गृहस्थों के कुल सौ घर हैं ।" कुशी नगर, जहाँ गौतम की मृत्यु हुई थी, वह भी अब उजड़ चुका था। वहाँ सिर्फ कुछ सन्यासी और उनके कुछ निकट सम्बंधी रहते थे। फाहियान ने प्रसिद्ध वैशाली के विषय में लिखा है-"बुद्ध के निर्वाण के सौ वर्ष बाद वैशाली के कुछ भिक्षुओं ने दस बातों में से, विनय के नियम को यह कहकर तोड़ दिया कि बुद्ध ने ऐसा करने की आज्ञा नहीं दी है। उस समय अर्हतों और सत्य-मताव- लम्बी भिक्षुओं ने जो कि कुल मिलाकर सौ थे। विनय-पिटक को फिर से मिलान करके संगृहीत किया ।
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