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दो श्रमर चीनी बौद्ध-भितु प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियान भारतवर्ष में लगभग ईसा की चौथी शताब्दि में आया और उसने अपनी यात्रा उद्यान यानी चमन के आस-पास के देश से प्रारंभ की । वह लिखता है कि वहीं से उत्तर-भारत की शुरूआत होती है। वहाँ का रहन-सहन, रीति-रिवाज मध्य-भारत से मिलता-जुलता है। उस समय वहाँ बौद्ध-धर्म का बड़ा भारी प्रचार था और उसके ५०० संघाराम बने हुए थे । वह वहाँ के गान्धार, तक्षशिला, पेशावर आदि बड़े- बड़े शहरों में गया। उसने पेशावर के एक-अद्भुत, सुन्दर और सुदृढ़ ऊँचे बौद्ध-मीनार का अपनी पुस्तक में वर्णन किया है। वह नगरहार आदि प्रान्तों में यात्रा करता हुआ सिन्धु नदी को पार करके यमुना के किनारे पर बसे हुए मथुरा में पहुँचा । यमुना के दोनों तटों पर २० संघाराम बने हुए थे और वहाँ लग- भग तीन हजार बौद्ध भिक्षु रहते थे। वहाँ का वर्णन वह इस प्रकार करता है- "बियवान से आगे पश्चिमी भारत के देश हैं। वहाँ के (राज- पूताने) सब राजा बौद्ध हैं। इसके बीच का देश मध्यदेश कह- लाता है। वहाँ का जलवायु गर्म और एकसा रहता है। वहाँ के -