चौद्ध-काल का सामाजिक जीवन पूर्ण रुचि रखते थे। आभ्यान्तर और वाह्य कोई संघर्प न था, चीन, यूनान, मिश्र, फारिस, सभी से मित्र भावनाऐ थीं। अथर्व वेद न था। कपिल को लोग जानते थे । रामायण और महाभारत को लोग नहीं जानते थे। महाभारत में यवनों और शकों का उल्लेख है। यवन तो चन्द्रगुप्त के समय में भारत में भा गये थे, परन्तु शक अशोक के समय तक नहीं आये थे। रामायण में पाटलीपुत्र और मगध के राज्य का नाम नहीं है । अयोध्या राज- धानी लिखी गई है, पर बौद्धकाल में साकेत और श्रावस्ती होगई थी । मोतिप के किसी ग्रन्थ और विद्वान का पता नहीं चलता। वैद्यक की चरक संहिता भी उस समय नहीं थी। चौद्ध-त्रिपिटक के चीनी अनुवाद से पता लगता है कि चरक कमिष्ट के राजवैद्य थे, जो अशोक से लगभग ४५० वर्ष पीछे हुए। शिल्प खूब उन्नत था। शिल्पी लोग नगर के उसी भाग में रहते थे, जिसमें ब्राह्मण रहते थे। और उनके नाम के साथ श्राचार्य पद जोड़ा जाता था, जैसा कि दक्षिण में अब भी है। शिल्पकार के हाथ काटने या अङ्ग-भंग करने वाले को मृत्युदण्ड मिलता था । प्रधान-प्रधान शिल्पी राज से वेतन पाते थे। अधि- काँश भवन लकड़ी के बनते थे । लकड़ी की कारीगरी बहुत उच्च थी। काशी का वृद्ध कालेश्वर का मन्दिर और आस-पास के खंडहर · चौद्ध शिल्प के नमूने हैं। तीन प्रकार के मुख्य भवन बनते थे। राज प्रासाद, सरकारी भवन और धर्म-मन्दिर । यह बात स्पष्ट होती है कि युधिष्ठिर के बाद चन्द्रगुप्त ही प्रथम
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