बुद्ध और बौद्ध-धर्म २३० जनक अवश्य है । इन कथाओं का मूल भाग रहा होगा, पर यह रूप जो अब देख पड़ता है, शायद नहीं था। इसी प्रकार पुराण भी न थे । पुराण तो अधिकांश चौद्ध-काल के पीछे बने हैं। क्योंकि इनमें बौद्धों और जैनियों का वर्णन, वह भी घृणा युक्त, मिलता है। अशोक तक का, प्रत्युत उनसे पीछे के नरेशों का, उल्लेख रहता है। यदि ये नाम ऋपियों के लिखे होते, और इनका कथन भविष्य-वाक्य होता, तो मुसलमान बादशाहो के भी नाम मिलते। पर पुराणों की भी प्रधान कथाएँ प्रचलित रही होंगी। कई कथाएँ जैसे राजा शिवि की कथा, कुछ रूपान्तर से चौद्ध-पुस्तकों में भी मिलती है। इन्हीं पुस्तकों में यह भी लिखा है कि समय- समय पर लोग 'अक्खान' (पाख्यान ) सुना करते थे। यह 'अक्खान' गद्य-पद्यात्मक होते थे । निःसन्देह यह आख्यान रामायण-महाभारत आदि की कथाओं के सहश रहे होंगे। सम्भव है, उनके पद्य भाग में मूल रामायण या मूल महाभारत के बहुत-से श्लोक रहे हों। यह तो प्रसिद्ध ही है कि महाभारत २४००० से १,२०,००० श्लोकों का हो गया है। पड़दर्शनों का कुछ भी पता नहीं लगता । न उनका कुछ जिक्र है। बौद्ध-साहित्य में लिपिटक और जातक थे, पंच निकाय भी थे । महाभारत अभी नहीं बना था, पाणीनि की अष्टाध्यायी और कात्यापन का वार्तिक था। और भी कुछ व्याकरण ग्रन्थ थे। कौटिल्य के अर्थ-शास्त्र को उस काल की राजनीति-ग्रन्थ कह सक | आध्यात्म विपयों पर विवाद बहुधा हुआ करता है। और लोग इन गम्भीर विपयों में .
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