बौद्ध काल का सामाजिक जीनव मंगास्थिनीज ने लोगों की शिक्षा और मस्तिष्क की अवस्था का जो वर्णन किया है, उसका सारांश यह है- "दार्शनिक दो प्रकार के हैं प्रात्मण और श्रमण । ब्राह्मणों की प्रतिष्टा अधिक है, क्योंकि उनके सिद्धान्तों में सामंजस्य अधिक है ( अर्थात् उनके मिद्धान्तों में परस्पर विरोध नहीं है ) गर्भाधान के समय से ही किसी-न-किमी विद्वान के निरीक्षण में रहते हैं, पर विद्वान ( गर्भिणी ) माता के पास जाते हैं, और उसके तथा उसके अजात बच्चे के लिए मन्त्र-तन्त्र पढ़ने के बहाने उसको समुचित परामर्श देते हैं। जो बियाँ उनकी बातें मन लगाकर सुनती हैं, उनकी सन्तति अच्छी होती है। जन्म के पीछे वचे एक-के-पीछे एक मनुष्य के निरीक्षण में रहते हैं, और ज्यों-ज्यों उनकी अवस्था बढ़ती जाती है, उनके शिक्षक भी उत्तरोत्तर अधिक विद्वान् होते है। दार्शनिक लोग नगर के सामने, अहाते के भीतर, एक कुञ्ज में, रहते हैं। बहुत सादगी से रहते हैं, और चटाइयों या मृगचर्मों पर सोत हैं। यह मांस और विपय सुख से दूर रहते हैं, और अपना समय गम्भीर भापणों के सुनने और जो कोई ज्ञान सीखना चाहें, उन्हें अपना ज्ञान सिखलाने में बिताते हैं। श्रोता थूकने को कौन कह, बोलने और खाँसन तक नहीं पाता । यदि कोई इस प्रकार की चूक कर बैठे, तो वह असंयमी समझकर वहाँ से निकाल दिया जाता है।" "इस प्रकार ३७ वर्ष विद्यालय में रह कर प्रत्येक व्यक्ति (विद्यार्थी ) अपने घर जाता है, और तब वह पतला मलमल
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