बुद्ध और बौद्ध-धर्म नगर के चारों ओर, एक दीवार (शहरपनाह) होती थी। इस में चार प्रधान फाटक होते थे । इसके अतिरिक्त चारों कोनों पर चार और फाटक होते थे। पूर्व से पश्चिम तक एक लम्बी सड़क- जिसे राज-मार्ग कहते थे होती थी, और उत्तर से दक्षिण तक एक छोटी सड़क-जिसे महाकल या वामन कहते थे। बीच के चौरास्ते पर राजप्रासाद या नगर की सभा का भवन या ग्राम्य-पंचायत का खुला स्थान होता था। चारों कोनों में यही घरों के समूह होते थे। इनके और दीवार के बीच में जो रास्ता होता था, उसे मंगल- वीथी कहते थे। इसी पर चलकर नगर की प्रदक्षिणा होती थी। उत्तर फाटक के अधिष्ठाता सेनापति ( कार्तिकेय ), दक्षिण के इन्द्र, पूर्व के ब्रह्मा और पश्चिम के यम थे। नगर की दीवार से सौ- धनुष की दूरी पर यात्रियों के लिए विश्राम-शालायें होती थीं। इनसे परे श्मसान और श्मसान से परे चाण्डालादि के घर होते थे : उत्तर-भाग में ब्राह्मणों, शस्त्रकारों, लोहारों और वौहरियों के घर थे। वायव्य कोण में बाजार और औषधालय थे । पूर्व-भाग में क्षत्रियों और कई प्रकार के कारीगरों तथा अन्न, पुष्प, सुगन्ध आदि के व्यापारियों के घर थे। पूर्व की ओर शूद्र रहते थे। शेष जनता दक्षिण-भाग में रहती थी। इस सामान्य वर्णन के पश्चात् पाटलिपुत्र का कुछ विशेष वर्णन करना भी रोचक होगा। वह गंगा और हिरण्यवाहा (सोन) के संगम पर बसा हुआ था। इसकी लम्बाई लगभग ४||कोस और चौड़ाई एक कोस से कुछ कम थी । इसके चारों ओर एक
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