२०६ महान बुद्ध सम्राट अशोक . भिन्न स्थानों पर उल्लेख मिलता है । शीलबान, रथ हाँकने वाले, तीर चलानेवाले, रसोई बनानेवाले, नाई, स्नानागारों में सेवा करने वाले, हलवाई, माली, धोबी, जुलाहे, डोलची बनाने वाले, कुम्हार, लेखक, मुनीम, सुघार, मिस्त्री, सोनार, लोहार, शस्त्रकार, संग- तराश, चर्मकार, हाथी-दाँत के कारीगर, रंगरेज, जौहरी, मछवाहे, कसाई, शिकारी और बहेलिये, मल्लाह, चित्रकार और मद्य बेचने- वाले यह तालिका बड़ी शिक्षा-प्रदा है, क्योंकि यह स्पष्ट कह देती है कि उस समय की सभ्यता बहुत बढ़ी-चढ़ी थी। आजकल की सभ्य समाजों में जिन प्रधान पेशों के लोग रहते हैं, प्रागः सभी इसमें हैं। इन पेशेवालों के दस्तूर आजकल से मिलते-जुलत थे. प्रत्येक पेशों की एक पृथक बिरादरी या (उपवर्ण ) होती थी, उसको पग या सेनिय ( श्रेणी) कहते थे । सेनिय के बाहर का कोई मनुष्य उस वृत्ति को धारण नहीं कर सकता था, पर कभी-कभी सेनिय के सदस्य अन्य वर्णवालों को भी अपना शिष्य बनाकर अपना रोज- गार सिखला देते थे। यह सेनियाँ या पंचायतें आपस के बहुत से झगड़े निबटा दिया करती थीं। प्रत्येक सेनिय में एक सरपंच या चौधरी होता था, इस चौधरी को प्रमुख या जेटुक (प्रमुख जेष्टक) कहते थे । इन जेटकों का राज-दरबार में बड़ा आदर होता था। जब नरेश सारी प्रजा को कभी एकत्र करना चाहते, तो वह प्रत्येक सेनिय के जेट्टक के पास सूचना भेज दिया करते । यदि सेनियों में झगड़ा हो जाता, तो उसका निर्णय महासेटि (महा श्रेष्ठी ) अर्थात् राज के प्रधान कोपाध्यक्ष के यहाँ होता था।
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