पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१९४

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२०७ महान बुद्ध सम्राट अशोक उसने कहा-"जब तक वह जीने को मरने से अच्छा न समझने लगे।" फिर दसवें से पूछा गया-"इन्होंने कैसे-कैसे उत्तर दिए हैं ?" उसने कहा-"सबने एक-एक से बढ़ कर गलत उत्तर दिए।" सिकन्दर ने कहा-" तो सब से पहले तुम मरोगे ?" उसने कहा-"नहीं ! हाँ, तुम अपना बचन तोड़ना चाहो, तो दूसरी बात है, क्योंकि तुमनं कहा था कि जो सब से ग़लत उत्तर दंगा, वह सब से पहले मरेगा सिकन्दर ने उनको इनाम देकर विदा कर दिया। एक दूसरे साधु ने, जिसका नाम यवनों के अनुसार कैलेनस था, बड़ी निडरता दिखलाई। सिकन्दर ने उसके पास आनेस्किटस नामक एक व्यक्ति को उसे बुलाने के लिए भेजा । कैलेनस ने उस के साथ रुखाई का बर्ताव किया, और कहा कि यदि तुम मुझसे बात करना चाहत हो, तो नंगे हो जाओ, नहीं तो तुमको चाहे देवरान ने भेजा हो, तो भी मैं तुमसे बात न करूँगा । डेंडेमिस- साधु ने सिवा यह पूछने के कि सिकन्दर ने इतनी लम्बी यात्रा क्यों की है ? कोई बात न की। इन कहानियों से यह पता चलता है कि और उनमें चाहे जो कुछ दोप-गुण रहे हों, उस समय के साधुओं में स्वाभिमान और स्वदेशाभिमान की मात्रा पर्याप्त थी । जगद्विजयी सिकन्दर ने ऐसे निर्भीक भापण करना और उसके भेजे हुए चरों का ऐसा निरादर