२०५ महानं बुद्ध सम्राट अशोक लोग सरल ज्ञान की अपेक्षा हठयोग की झूठी-सच्ची सिद्धियों के पीछे पड़ गये थे। भिन्न-भिन्न प्रकार से शरीर को कष्ट देकर रहना तप कहाता था। शरीर पर से बालों को नोंच डालना, सदा खड़े रहना, एड़ियों के बल बैठना, या चलना, काँटों पर सगेना, शरीर पर धूल मले रहना, ये बातें महत्वपूर्ण मानी जाने लगी थीं। साधुओं की प्रतिष्ठा बढ़ गई थी-विशेप कर बौद्ध श्रमणों की । सिकन्दर के जीवन में ऐसी कुछ बातों का उल्लेख है, जो प्लूटार्क ने लिखी हैं- "यह साधु सिकन्दर को बड़े दुःखद प्रतीत हुए, क्योंकि यह भारतीयों को लड़ने के लिये भड़काते थे, और जो नरेश सिकन्दर का साथ देते थे, उनका नाम कलङ्कित कर देते थे, इसीलिये सिकन्दर ने बहुतों को मरवा डाला । जो हो, इनकी यह देश- हितैपिता सर्वथा प्रशंसनीय थी। भारत से लौटते समय सिकदर ने दस दार्शनिकों को जिन्होंने उसको इस प्रकार की कई आपत्तियाँ पहुँचाई थीं, पकड़वा मँग- वाया, उसने उनसे बड़े कठिन-कठिन प्रश्न पूछे और उनमें जो सब से बूढ़ा था, उसको पंच बना दिया। उसने यह भी कह दिया कि जो सब से पहले गलत उत्तर देगा, वह सब से पहले मारा जायगा, और उसके पीछे और सब मार डाले जायंगे। उसने पहले से पूछा-"जीवितों की संख्या अधिक है या मृतों की।" उसने उत्तर दिया-"जीवितों की, क्योंकि मृतोंका तो अस्तित्व ही जाता रहता है । ,
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