बुद्ध और बौद्ध धर्म २०४ निकालना, भूत-प्रेत निकालना, सर्प के मन्त्र पढ़ना, पशु-पक्षियों को मन्त्र पढ़कर वश में करना, किसी कन्या के ऊपर भूत-प्रेत देव-देवता आ गया हो, तो उसे उतारना, उससे बात करना, मन्त्र- तन्त्र का जप, मन्त्र द्वारा किसी को नपुंसक बना देना , किसी को पुत्र की प्राप्ति कराना, श्री की पूजा करना और हवन करना। हवन में प्रायः पशुओं के मॉस की आहुतियाँ देना और बचे हुए माँस को खा जाना। बौद्ध-ग्रन्थों में उन देवताओं के नाम भी दिए हुये हैं, जिनकी उस समय अधिक पूजा होती थी। इनमें प्रधान वेन्दु (विष्णु) सक (शक्र-इन्द्र) प्रजाइति (ब्रह्मा) सामवरुण सूर्य थे, और भी देवी-देवता थे। जो नवीन थे। वैदिक देवता मित्र, पूपण बसण्ड, मरुत, आश्विन, सावित्री आदि का प्रचार कम हो गया था । वायु की प्रतिष्ठा कम हो गई थी, अग्नि पूजा झगड़े की जड़ थी। अभि. प्राय यह है कि उस समय में वैदिक-धर्म के नाम पर जनता में बहुत-से पाखण्ड और अन्ध-विश्वास थे। जैन और बौद्ध लोग हिंसा का सर्वथा त्याग किये हुए थे। बौद्ध-धर्म राष्ट्र-धर्म हो गया था। इसी काल में बौद्धों ने बुद्ध के दाँत, हड्डी और उसकी स्पर्श की हुई प्रत्येक वस्तु पर मठ, स्तूप, स्तम्भ आदि बनाए । धीरे- धीरे बुद्ध की मूर्ति भी बनने लगी, और उसकी पूजा होने लगी, जिसका प्रभाव आगे पौराणिक जनता पर पड़ा और उसने शिव, विष्णु आदि की मूर्तियाँ बनाकर पूजनी शुरू कर दी।
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