महान् बुद्ध दूसरी वर्षा-ऋतु भी गौतम ने राजगृह ही में व्यतीत की। इसके बाद वह कौशलों की राजधानी श्रावस्ती में गया; जहाँ के राजा प्रसेनजित ने अपना कुंज उसके ठहरने को दिया । बुद्ध वहाँ ठहर कर वहाँ के निवासियों को उपदेश देते रहे । तीसरी वर्षा भी उसने राजगृह में व्यतीत की। इसके बाद वह चौथे वर्ष गंगा पार करके वैशाली गया और वहाँ एक कुंज में ठहरा । रोहिणी नदी के पानी के सम्बन्ध में कोलियों और शाक्यों में एक झगड़ा चल रहा था। बुद्ध ने उसका फैसला किया। इसके बाद वह फिर कपिलवस्तु गया । और अपने पिता की मृत्यु के समय वह उनकी सेवा में उपस्थित रहा । उसके पिता की, मृत्यु के समय ६७ वर्ष की अवस्था थी। पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी विमाता और यशो- धरा स्वतन्त्र होगई और उन्होंने स्वतन्त्र रूप से बुद्ध-धर्म को ग्रहण किया। यद्यपि बुद्ध नहीं चाहता था कि स्त्रियों को भिक्षुणी बनाया जाय, किन्तु उसकी माता ने बड़ा आग्रह किया और वह वैशाली तक उसके साथ गई । आनन्द ने उसकी माता का पक्ष लिया और उसने कहा-हे प्रभो ! जब स्त्रियाँ गृहस्थ को छोड़ दें और बुद्धों के सिद्धान्तों को स्वीकार करें, तब क्या कारण है कि वह उस कल्याण को प्राप्त न कर सकें जिसको कि पुरुप प्राप्त करते हैं। आखिर बुद्ध ने स्त्रियों को भी भिक्षुणी बनने की आज्ञा दे दी, लेकिन ऐसे नियम बना दिए कि वे हमेशा भितुओं के आधीन रहें। इसके बाद वर्षा ऋतु व्यतीत करने के लिए अपने धर्म प्रारम्भ के छठे वर्ष वह राजगृह को लौटा और विम्बसार की रानी । -
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