पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१७८

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१६१ महान् बुद्ध सम्राट अशोक हाथ में रक्खा है। अभियुक्त करने औरदण्ड देने में दृष्टि से देखना चाहिए । इस लिये आज की तिथि से यह नियम किया जाता है कि जिन कैदियों का न्याय हो गया है और जिन्हें फांसी देने की आज्ञा हुई है, उनके लिये तीन दिन की अवधि दी जाय । उनको सूचना दी जायगी कि वे तीन दिन तक जीवित रहेंगे। न इससे अधिक और न इससे कम । इस प्रकार अपने जीवन की सूचना पाकर वे अपने दूसरे जन्म के हित के लिये दान देंगे अथवा व्रत रक्खेंगे। मेरी इच्छा है कि बंदी गृह में भी उन्हें भविष्यत् का निश्चय दिलाना चाहिए, और मेरी यह दृढ़ अभिलाषा है कि मैं धर्म के कार्यों की उन्नति, इंद्रियों के दमन और दान का प्रचार देखू । " - सूचना ५- देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला । अपने रीज्या भिषेक के २६ वर्ष के उपरान्त मैंने निम्नलिखित जीवों के मारे जाने का निवेध किया है, अर्थात् शुक, सारिका, अस्न, चक्रवाक, हंस नन्दिमुख, गैरन, गेलात ( चमगीदड़) अम्बक पिल्लिक, दद्धि, अनस्थिक मछली, वेदवेयक, गंगा नदी के पुपुत, सकुंज,कफत, सयक,पमनसस, सिमल, संदक, ओकपिण्ड,पलसत, स्वेतकपोत, ग्राम कपोत और सब चौपाए जो किसी काम में नहीं आते और खाए नहीं जातें । बकरी, भेड़ी और शूकरी जब गाभिन हों वा दूध देती हों वा जबतक उनके बच्चे छः महीने के न हों न मारी जाय, लोगों के खाने के लिए मुर्गीको खिलाकर मोटी न करनी ,