१८६ महान् बुद्ध सम्राट अशोक सूचना:२ देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला-धर्म उत्तम है । पर यह पूछा जा सकता है कि यह धर्म क्या है ! धर्म थोड़ी-से-थोड़ी चुराई और अधिक से अधिक भलाई करने में है, वह दया, दान, सत्य और पवित्र जीवन में है। इसलिए मैंने मनुष्यों, चौपायों और जल-जन्तुओं के लिए सब प्रकार के दान दिये हैं, मैंने उनके हित के लिए बहुत-से कार्य किये हैं, यहाँ तक कि उनके पीने के लिए जल का भी प्रबन्ध किया है । और बहुत- से अन्य प्रशंसनीय कार्य किये हैं। इस हेतु मैंने यह सूचना खुद- वाई है, जिसमें लोग उसके अनुसार चलें, और सत्यपथ को ग्रहण करें, और यह बहुत काल तक स्थिर रहे।जो इसके अनुसार कार्य करेगा, वह भला और प्रशंसनीय कार्य करेगा। - - , सूचना ३- देवताओं का प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला--मनुष्य केवल अपने-अपने अच्छे कर्मों को देखता है, और कहता है कि मैंने यह अच्छा कार्य किया है। पर वह अपने बुरे कर्मों को नहीं देखता, और यह नहीं कहता कि मैंने यह बुरा कार्य किया, यह पाप है। यह सच है कि ऐसी जाँच करना दुखदायी है, परन्तु यह आवश्यक है कि अपने मन में यह प्रश्न किया जाय, और यह कहा जाय कि ऐसी बातें यथा दुष्टता, निर्दयता, क्रोध और अभिमान पाप हैं। सावधानी से अपनी परीक्षा करते और कहते रहना
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