बुद्ध और बौद्ध-धर्म १८८ के लोगों के बौद्ध हो जाने की आशा प्रकट की है। (७)यह आशा प्रकट की है कि उसकी सूचनाएं तथा धर्मोपदेश लोगों को सत्य पथ पर चलने के लिये उद्यत करेंगे, और () अन्त में अपन सर्व- साधारण के हित के कार्यों और लोगों की धर्मोन्नति के उपायों का पुनरूल्लेख क्यिा है, और सदाचार की शिक्षा द्वारा लोगोंको अपने मत में लाने की आज्ञा दी है। इन पाठों सूचनाओं का निम्न- लिखित अनुवाद सिर्नाट साहब के अनुसार दिया जाता है- मूचना १- दवताओं के प्रिय राजा पियदसी इस प्रकार बोला-अपने राज्याभिषेक के २६ वें वर्ष में मैंने यह सूचना खुवाई है । धर्म में अत्यन्त उत्साह, कोर निरीक्षण, पूरी तरह श्राज्ञा-पालन करने और निरन्तर उद्योगों के बिना मेरे कर्मचारियों को इस लोक तथा परलोक में सुख पाना कठिन है। पर मेरी शिक्षा को धन्यवाद है कि धर्म के लिए यह चिन्ता और उत्साह बढ़ रहा है, और दिन- दिन बढ़ेगा । और मेरे उच्च श्रेणी के मध्यम श्रेणी के तथा नीचे की श्रेणी के कर्मचारी लोग उसके अनुसार चलते हैं, और लोगों को सत्यमार्ग बतलाते हैं तथा उन्हें हर्पित रखते हैं। और इसी प्रकार मेरे सीमा प्रदेश के कर्मचारी (अन्तमहामात्र ) भी कार्य करते हैं। क्योंकि नियम यह हैं- धर्म से शासन, धर्म से कानून, धर्म से उन्नति और धर्म से
पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१७५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।