महान् बुद्ध बुद्ध ने यह नियम बनाया कि भविष्य में कोई.भी बालक बिना उसके माता-पिता की सम्मति के भिन्नु नहीं बनाया जायगा। जब युद्ध राजगृह को लौट रहा था तब वह मल्लों के नगर अनूपया में ठहरा और कोली तथा शाक्य-वंश के बहुत से पुरुषों को अपना शिष्य बनाया । शाक्य वंश का कुमार अनिरुद्ध अपनी माँ के पास गया और उससे भिनु होने की आज्ञा माँगी। उसकी माँ ने कहा-यदि शाक्यों के राजा फड़िय संसार त्यागकर भिक्षु हो जाये तब तू भी भिक्षु हो जाना । तब अनिरुद्ध फहिय के पास गया और उन दोनों ने उसी सप्ताह में बौद्ध-धर्म को ग्रहण करके भिक्षु होने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार शाक्य राजा, फड़िय, अनिरुद्ध, आनन्द, भृगु, किविल और देवदत्त सब मिलकर अपने-अपने महलों से निकले, मानों वे अानन्द विहारके लिए जा रहे हों। उनके साथ प्रसिद्ध हज्जाम उपाली भी था। नगर से बाहर जाकर उन्होंने अपने रनजड़ित वना-भूषणों को उतारकर उपाली हज्जाम को दिये और कहा- हे उपाली ! अब तुम घर को लौट जाओ, ये वस्तुएं तुम्हारे निर्वाह के लिए बहुंत हैं । लेकिन उपाली दूसरे ही प्रकार का आदमी था, उसने लौटने से इन्कार किया । ये सब लोग बुद्ध के पास गए और भितु बन गए। फड़िय ने जब भिन्तु-धर्म ग्रहण किया तो वह बड़ी प्रसन्नता से कहने लगा-वाह सुख ! वाह सुख !!गौतम ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बतलाया हे मालिक ! पहले जब मैं राजा था तो
पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।