१५५ महान बुद्ध सम्राट अशोक किनारे-किनार महानदी गोदावरी के बीचमें था और राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था-वतन्त्र था । इस युद्ध में कलिङ्ग राज ६०हज़ार पैदल, १००० सवार और ७२० हाथी लेकर आया था। यह युद्ध देर तक होता रहा । अन्त में वह साम्राज्य में मिला लिया गया। इस युद्ध में डेढ़ लाख मनुष्य कैद किए गए थे, और १ लाख वध किए गए । वहुत-से याही मर गए। इस महान नर-हत्या से सम्राट का हृदय हिल गया । इसी समय उपगुप्त बौद्ध-भिनु से भेंट हुई, और उन्होंने महामना तिष्य पुत्र मौगली के आदेशानुसार उसे बौद्ध-धर्म में दीक्षित किया। वे बौद्ध हो गए। पहले उपासक हुए, फिर संघ के सदस्य हुए। इसके बाद यह प्रबल प्रतापी सम्राट ऐसा प्रसिद्ध धर्मात्मा हुआ, जिसके जोड़ का कोई दूसरा व्यक्ति नहीं। अशोक ने, उसकी धर्माज्ञाएँ-जो समय-समय पर उसने प्रचरित की थी गुफाओं, स्तंभों और शिला-खण्डों पर खुदवाई हैं। इनकी भापा प्राकृत है। उन धर्माज्ञाओं से अशोक साम्राज्य का विस्तार और उस सम्बन्ध की बहुत-सी बातों का ज्ञान होता है । इनमें से १४ प्रशस्तियाँ सीमा प्रान्तों पर मिली हैं, जो अभिषेक के १३-१४ वर्ष बाद लिखी गई हैं। ये प्रशस्तियाँ नीचे लिखे स्थानों पर मिली हैं-शहबाजगढ़ी (पेशावर से २० मील उत्तरपूर्व कोण यूसुफ जाइयों के सूबे में :, मंसेरा (पंजाब के हज़ारा प्रान्त में ), सीपारा (बम्बई के थाना जिले में),गिरनार (काठियावाड़ के जूना- गड़ राज्य में), धोलो (उड़ीसा के कटक जिले में), जौगड़ (मद्रास के गंजाम जिले में), इनके सिवा कई शिलालेख मैसूर, वङ्गाल,
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