बुद्ध और बौद्ध-धर्म १५४ यहाँ से अशोक मध्य भारत के मण्डलेश्वर बनाकर भेज दिए गए। जिसकी राजधानी उज्जैन थी। उज्जैन उन दिनों महानगरी थी। कालिदास के मेघद्भुत और विशाखदत्त के मृच्छ कटिक नाटक में इस नगर की आश्चर्यजनक श्री वर्णन की गई है। उसकी गिनती ७ महातीर्थों में थी । यहाँ भी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। यहाँपर श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह भौगोलिक स्थिति का भी महत्व रखता था। आर्य ज्योतिपी अबतक देशान्तर रेखाओं की गणना उज्जैन से करते हैं। फिर उसके व्यापार केन्द्र का क्या ठिकाना था-पश्चिमीय सभी समुद्र-तटस्थ नगरों का व्यापार इसी स्थान से जाता-आता था। तक्षशिला में रहकर जहाँ अशोक को अन्तर्जातीय व्यवहार, विदेशीय नीति, आदि का ज्ञान हुआ, वहाँ उज्जैन में व्यापार शिल्प और घरेलू प्रबन्ध की वातें सीखने का बड़ा सुयोग हाथ लगा। अशोक का अभिपेक २८३२ युधिष्ठिराब्दि में हुआ था।राज्यारोहण के बाद वर्ष तक अशोक ने कोई बड़ा कार्य न किया। अशोक के काल में माँसाहार का बड़ा प्रचार था । सहस्त्रों जीव राज-भोजन के लिए काटे जाते थे। अशोक जब जीव हत्या से घृणा करने लगा था, तब भी उसकी रसोई में ३ जोव, दो मोर, १ मृग नित्य कटते थे, जो पीछे बन्द हो गए। अभिषेक के नवें वर्ष अशोक ने कलिङ्ग पर आक्रमण किया। इस समय आशोक का शासन समस्त उत्तर-भारत में और दक्षिण में मैसूर तक फैला हुआ था । कलिङ्ग-जो वङ्गाल की खाड़ी के
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