जो समस्त महान बुद्ध सम्राट अशोक मौर्यवंश का यह प्रबल प्रतापी सम्राट भारत का एक ऐसा प्रबल अस्तित्व है, जो पृथ्वो की स्मृति से कभी दूर न होगा। आज से लगभग २२॥ सौ वर्ष पूर्व यह प्रतापी पुरुष मगध के सिंहासन पर विराजमान हुश्रा । बौद्ध ग्रन्थों में जो इस सम्राट के बाल काल का इतिहास है, वह अप्रमाणिक है । सम्राट होने से प्रथम उन्हें इनके पिता बिम्बसार ने पश्चिमोत्तर प्रदेश का मण्डलेश्वर (गवर्नर) बना दिया था। इस प्रान्त का मुख्य नगर तक्षशिला था, एशिया और यूनान में लब्ध प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय था। जिसका उल्लेख पृथक् किया गया है। महाकौटिल्य चाणक्य यहीं के विद्यार्थी थे। इसलिए एक तो विद्या का केन्द्र होने से, दूसरे राजनीति सीमा होने से यह स्थल पृथ्वी-भर की महाजातियों के आवागमन का माध्यम नगर बन गया था। यहाँ रहकर अशोक ने बहुत दुर्लभ सत्संग प्राप्त किया। इसके पश्चिम में यवन साम्राज्य था, उत्तर में अदम्ब जंगली जातियाँ थीं। और उत्तर-पूर्व चीन-साम्राज्य था। अतः अशोक को ऐसे नाजुक स्थल पर ऐसे उत्तरदायित्व के पद पर रहने से अपनी नीतिमत्ता, शासन पटुता और विकास का बड़ा अवसर मिला।
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