बुद्ध और बौद्ध-धर्म १४८ , जीवन शक्ति देने से वह माननीय और देवी,जीवन शक्ति की, सौन्दर्य देने से सौन्दर्य की, आनन्द देने से आनन्द की, और बल देने से मानवीय और देवी बल की साझीदार बन जाती है। जिस काल में बुद्धने अपने धर्म का प्रचार किया था। उस काल में स्त्री-जाति की सामाजिक स्थिति बहुत हीन हो गई थी। यह बुद्ध ही का साहस था कि उसने कहा-"निर्वाण की प्राप्ति न केवल ब्राह्मण को ही होती है परन्तु मनुष्यमान को प्राप्त हो सकती है और स्त्रियों को भी हो सकती है। यह वही समय था जिसमें कि "त्री शुद्रों नाधी ये ताम्" की आवाज ऊँची थी । और स्त्रियों का कोई सामाजिक स्थान ही नहीं था। बुद्ध की माता ने और स्त्री ने बुद्ध को इसपर आग्रह किया था कि भिक्षुओं की तरह भिक्षुणियों का भी एक संघ बनाया जाय बुद्ध यद्यपि स्त्रियों को अपने धर्म से अलग ही रखना चाहते थे। किन्तु वे इस बात का विरोध नहीं कर सके । लेकिन जब उन्होंने संघ में स्त्रियों को ग्रहण करना शुरू कर दिया तो उनपर भिक्षुओं का कड़ा नियन्त्रण था । उन्हें उपदेश सुनने के लिए भिक्षुओं के पास जाना पड़ता था। बुद्ध ने यह भी एक भविष्य वाणी की थी- "त्रियों को संघ में सम्मिलित करने का परिणाम यह होगा कि ५०० वर्षों के भीतर लोग धार्मिक नियमों को भूल जायेंगे । उन्होंने स्पष्ट कहा था-"किसी भी मत सिद्धान्त या अनुशासन के अनुसार जहाँ स्त्रियों को गाईस्त जीवन से निकालकर गृह विहीन
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