१४७ बौद्ध-धर्म में स्त्रियों का स्थान मित्र समझ, परस्पर एक-दूसरे का आदर करें और परस्पर एक- दूसरे का विश्वास करें। माता के प्रति बुद्ध भगवान् का आदर बहुत उच्च है । बुद्ध स्त्रियों को भी पुरुप की भांति भिनुरिणयाँ बनाते थे। और बौद्ध-धर्म के अनुसार खियों को निर्वाण प्राप्त करने का उतना ही अधिकार है जितना कि पुरुषों को। इतिहास बतलाता है कि बुद्ध के जीवन काल में ७३ त्रियों ने और १-७ पुरुषों में निर्वाण प्राप्त करके मानव- जीवन के विकास की चरम सीमा तक पहुँचने का प्रयत्न किया था । जब बुद्ध-धर्म का प्रसार हो रहा था तव स्त्रियों ही ने सबसे अधिक आर्थिक सहायता की थी। बुद्धने विसाखा आदि स्त्रियों की बहुत प्रशंसा की है। एक स्त्री की प्रशंसा करते हुए बुद्ध ने कहा है-"यह महिला सांसारिक वातावरण में रहती है और राज शनियों की कृपा पात्री है तो भी इसका हृदय स्थिर और शाँत है। अवस्था युवा और धनी तथा एश्वर्य से घिरी हुई है फिर भी यह कर्त्तव्य-पथ में अविचल और विचारशील है। यह इस संसार की दुर्लभ चीज़ है। एक और महिला के सम्बन्ध में कि जिसने बुद्ध को अपने हाथों से भोजन कराया था। इस बी के सम्बन्ध में बुद्ध ने कहा है-"एक उत्तम धार्मिक महिला जो भूखों को भोजन देती है, वह उसे भोजन के साथ चार चीजें देती है-(१) वह जीवन शक्ति देती है (२) वह सौन्दर्य प्रदान करती है (३) वह आनन्द देती है (४) वह बल देती है। .
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