बुद्ध और बौद्ध-धर्म फिर भी बुद्ध ने अपने साधारण अनुयाइयों और गृहस्थियों के प्रति यह उपदेश किया था कि जहाँतक हो अपनी स्त्रियों को अपना मित्र समझो और उनपर विश्वास रक्खो। साधारण भक्तों को यह उपदेश दिया कि माता-पिता की सेवा, पत्नी और बच्चों का सहवास तथा शांतिपूर्ण उद्योग ही सबसे बड़ा आर्शीवाद है। बौद्ध-धर्म में जहाँ पति-पत्नी के सम्बन्ध और उनके व्यवहार के लिए अनेकों नियमोपनियमों की चर्चा की गई है वहाँ पत्नी के लिए पति की आज्ञा पालन का कोई जिक्र ही नहीं है। पतियों के लिये जरूर आदेश है कि वे अपनी पत्नियों के विश्वास पात्र रहें, उनका आदर करें और उन्हें यथोचित वस्त्राभूषण प्रदान करें। , पत्नियों को प्रतिव्रत धर्म के पालन की ओर मितव्ययी बनाने की शिक्षा दी है। स्त्रियों को यह भी कहा गया है कि वे अपने घरेलू कार्यों में बुद्धिमत्ता और उद्योगशीलता दिखावें । परन्तु उनका सबसे बड़ा भारी सिद्धान्त तो यह है कि अविवाहित जीवन ही मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा श्रेय है। एक बार उन्होंने कहा है कि बुद्धिमान् मनुष्य को विवाहित जीवन से यह खयाल करके डरना चाहिये, मानो वह एक आग से जलती हुई कोयले की खान है। और उन्होंने यह भी कहा है कि जो आदमी घर में रहता है वह कैसे त्रिशुद्ध जीवन व्यतीत कर सकता है। इन सब बातों से पता चलता है कि बुद्ध अविवाहित जीवन को तो सबसे श्रेष्ठ समझते ही थे लेकिन गृहस्थियों के लिए भी उन्होंने ऐसे नियम बनाये थे कि वे एक-दूसरे को परस्पर अपना
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