पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१४३

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म सब तरह के काम करते थे। एक क्षत्रिय का तो यहाँतक वर्णन है कि वह कुम्हार का काम करता था। बुद्ध के जन्म के समय सबसे बड़ी भयानक बात तो यह थी कि यज्ञ में पशु वध होता था । यज्ञ जैसे वस्त्रार कर्म में यज्ञ वेदी को पशुओं के खून मे लाल किया जाता था | यह इस आशय से नहीं किया जाता था कि यजमान का इससे कुछ भन्नता हो । किन्तु यह पुरोहितों का खास काम था और वह यजमानों को यज्ञ करने के लिये उत्साहित करते थे । बिना दान और दक्षिणा के यज्ञ अधूरा समझा जाता था। तमाम समाज में कर्म काण्ड के बनाये हुए आडम्बर फैले हुए थे। लोग अन्धेरे में थे और वह एक प्रकाश को चाह रहे थे। यज्ञ के कर्ता का प्रभाव समाज पर बहुत बुरा पड़ता था। एक तो पशु-वध से लोगों के हृदय क्रूर और कठोर बनते जा रहे थे। इन यज्ञों में बहुत-सा धन नष्ट होता था । ब्राह्मणों को बड़ी-बड़ी दक्षिणाऐं दी जाती थीं। स्वर्ण, चाँदी आदि दान में दिये जाते थे। बहुत से यज्ञ ऐसे होते थे कि जिनमें साल-साल भर लग जाता था और उनमें हजार-हजार आदमी रहते थे। इसलिए बड़े-बड़े धनवान ही यज्ञ करा सकते थे। चूंकि यज्ञ ही एक महान्- धर्म समझा जाता था इसलिये दीन-हीन,दरिद्री, निर्धन, कंगालों के लिये धर्म के तमाम शिष्टाचार बन्द थे । यज्ञ के अलावा दूसरा अन्ध-विश्वास यह फैला योग से सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है। लोग बहुत बड़ी तपस्याएँ किया करते थे। महीने-महीने तक उपवास किया करते , हुआ था कि