बुद्ध और बौद्ध-धर्म १३८ कानून बनाने में राय ही नहीं देते थे किन्तु उनपर सवको अमल करवाते थे। इन प्रजातन्त्र राज्यों का युद्ध के जीवन पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा। बुद्ध शाक्यों के प्रजातन्त्र पैदा हुए थे। उनके पिता शुद्धोधन इम प्रजातन्त्र के मुखिया थे । बुद्धने जब अपने भिनु-संघ का संगठन किया तब उसको इन राज्यों से बड़ी भारी सहायता मिली थी। बुद्ध के पहले आर्यों में बड़ा भारी मत भेद था। लेकिन उस समय क्षत्रियों का दर्जा मबसे श्रेष्ठ था उनका मान भी बहुत अधिक था। उनके बाद ब्राह्मणों का दर्जा था। और ब्राह्मणों के बाद वैश्यों का और फिर शूद्रों का । बौद्ध और जैन ग्रन्थों में क्षत्रियों के उत्कर्ष का बहुत वर्णन है। यद्यपि ब्राह्मणों के अन्यों में जो कि लगभग उसी काल में बने हुए हैं, ब्रह्मणों का दर्जा सबसे बड़ा वताया गया है। लेकिन बौद्ध और जैनियों के ग्रन्थों को देखने से इस बात का भेद खूब खुल जाता है। इससे ५००-६०० वर्ष पूर्व ब्राह्मणों में और क्षत्रियों में बड़ा भारी संघर्श हुआ था। दोनों एक-दूसरे से बढ़ जाना चाहते थे। इस समय जो बौद्ध और जैन ग्रन्थ लिखे गये उनमें ब्राह्मणों का खण्डन और क्षत्रियों का पक्ष लिया गया था। इसमें तो कोई शक नहीं, कि उस समय क्षत्रिय विद्या, बुद्धि, बल, तप और तेज में ब्रह्मणों से बहुत आगे बढ़ गए थे। जैनियों के कल्प-सून नाम के प्रन्थ में तो यहाँतक लिखा हुआ है कि अहित जैसे महा-पुरुष ब्राह्मण जाति, वैश्य जाति, जैसी नीच जातियों में पैदा नहीं होते,
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