पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१४

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महान् बुद्ध , यह प्रसिद्ध पुरुष जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में आदर से देखा जाने वाला था और जिसके सम्मुख राजा लोग भी सिर झुकाते थे, जब हाथ में भिक्षा-पात्र लेकर गलियों और रास्तों में द्वार-द्वार बिना कुछ प्रार्थना किये नीची दृष्टि किये हुए चुपचाप खड़ा हो जाता तब लोग भोजन का एक प्रास भिक्षा-पान में डालते और ११ ग्राम भोजन लेकर वह उमी प्रकार नीची दृष्टि किये हुए अपने स्थान को लौट जाता। हजारों मनुष्य इस महान त्यागी पुरुप को इस अवस्था में देखकर उसे सिर झुकाते थे। वह स्त्री-पुरुषों को समान भाव से उपदेश देता था । इस काल में स्त्रियाँ पुरुषों के बुद्धि- विपयक-जीवन में सम्मिलित थीं। और वे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करने की अधिकारिणी मानी गई थीं। जब गौतम की ख्याति उसकी जन्म-भूमि तक पहुँची तो उसके वृद्ध पिता ने उसे एक बार देखने की इच्छा प्रकट की। पिता का निमन्त्रण पाकर युद्ध कपिलवस्तु गये और अपने नियमानुसार नगर के बाहर एक कुञ्ज में ठहर गये । उनके पिता और सम्बन्धी उनसे मिलने को स्वयं वहाँ गए और दूसरे दिन गौतम स्वयं नगर के अन्दर पाए । लोगों ने देखा कि वह महान पुरुप उन्हीं लोगों के सामने भिक्षा-पात्र लेकर एक-एक प्रास भिक्षा माँग रहा है जिसे वे अपना स्वामी और राजकुमार मानते थे। ऐसा देखकर नगर में हाहाकार मच गया । वृद्ध शुद्धोधन ने अपने पुत्र को इस प्रकार भिक्षा माँगने से रोका, और कहा- हम लोग प्रतापी योद्धाओं के वंशज हैं। हमारे यहाँ कभी किसी ने भिक्षा नहीं माँगी। तब