बुद्ध और बौद्ध-धर्म १३० गाथा, १० जातक, ११ निद्देश, १२ परिसंभिदामग्ग, १३ अवदान, १४ वुद्धवंश, १५ चरिया पिटक । खुद्दक पाठयह छोटी पुस्तक नये भिक्षुओं के लिए है। इसमें मनुष्य देह की रचना, अस्थि, मज्जा, स्नायु आदि ३४ विपयों पर थोड़ी-थोड़ी चर्चा की गई है। धम्मपद में धार्मिक और नैतिक विषय के ४२३ श्लोकों का संग्रह किया गया है। सब श्लोक बौद्ध धर्मानुसार नीति और संयम के २६ विषयों में विभाजित कर दिए गए हैं। और प्रत्येक विषय में १० से २० तक श्लोक हैं। इसमें बहुत से श्लोक महा- भारत और मनुस्मृति के भी हैं। इसमें ग्रन्थ की एक प्राचीन टीका भी है जिसमें प्रत्येक श्लोक पर एक एक घटना लिखी गई है। ये घटनाएं सरल पाली भाषा में लिखी हुई और बहुत रसमयी हैं। प्राचीन काल में नालन्दा, विक्रमशिला आदि स्थानों में जो पाठ- शालाएं थीं उनमें अध्ययन करनेवाले विद्यार्थी, गिरीकन्दराओं तथा विहारों में रहनेवाले बौद्ध भिक्षु और मितुणी, संसारी और विरक्त सब एक ही रीति से भक्तिपूर्वक इस ग्रन्थ को पढ़ते थे। उदान में उन बातों का वर्णन है कि जब बुद्ध बहुधा किसी दृश्य या अद्भुत वस्तु को देखकर एकाएक प्रसन्न हो उठते थे। उस समय उनके मुख से कुछ-न-कुछ काव्यमय सरस शब्द निकल पड़ते थे। उनके शिष्यगण उन वचनों को लिख लिया करते थे। उदान में इस प्रकार के २२ वचनों का संग्रह है। इतिवृत्तक के विषय में प्रो० रीज डेविड्स का कहना है कि
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