१२६ बौद्ध-धर्म-साहित्य - पुत्र महेन्द्र बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लंका गया था तब इसको वह अपने साथ ले गया था। स्मरण रहे कि इन ग्रन्थों में राजगृह और वैशाखी की सभाओं का तो वर्णन है, पर पाटलीपुत्र में हुई सभा का उल्लेख नहीं है । सम्भव है कि इन दोनों सभाओं के मध्य में इनकी रचना हुई हो। इसमें तो कोई शक नहीं कि त्रिपिटक के बहुत से अंश बहुत प्राचीन हैं लेकिन बहुत से अर्वा- चीन भी हैं। इनका अनुवाद चीनी, जापानी, सिंही और बर्मी भाषा में हुआ है। कुछ लोगों का मत है कि पहले दो ही पिटक थे सुत्त पिटक और विनय पिटक । सुत्त पिटक के ५ निकाय हैं उसमें बुद्ध ने जो उपदेश अपने शिष्यों को दिया है वह प्रश्नोत्तर के रूप में है। बुद्ध और उसके शिष्यों में जो परस्पर वाद-विवाद और प्रश्नोत्तर हुए हैं, उनका बराबर इसमें संग्रह किया गया है। ये प्रश्नोत्तर और सम्वाद बहुत गहण हैं। इनके एक-एक सूत्र पर एक-एक व्याख्यान और एक-एक ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं । दीर्घ निकाय में दीर्घ अर्थात् बड़े लम्बे सम्बाद हैं । मझिझम-निकाय में मध्यम आकार के सम्बाद हैं। संयुक्त निकाय में एक ही विषय पर भिन्न-भिन्न शिष्यों के साथ हुए सम्वादों का संग्रह है। अंगुत्तर निकाय में बौद्ध-धर्म के मानस शास्त्र तथा नीति शास्त्र के सूत्र बने हुए सम्वाद अलग किये गये हैं। अंगुत्तर निकाय सब निकायों से बड़ा है । खुद्द निकाय में छोटे-छोटे सम्बादों का समावेश है। इसके १५ अन्तर्विभाग किए गए हैं-१ खुद्दक पाठ, २ धम्मपद, ३ उदान, ४ इतिवुतक, ५ सुत्त निपात, ६ विमान वत्थु, ७ पेत वत्थु, ८ थेर गाथा, ६ थेरी
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