युद्ध और बौद्ध-धर्म १० ब्राह्मणों और दरबारियों को साथ लेकर बुद्ध के पास गया । वहाँ जब उसने बुद्ध के पास महान काश्यप को बैठे हुए देखा तो उसे यह सन्देह हुआ कि गौतम काश्यप का शिष्य है या काश्यप गौतम का। गौतम ने राजा के सन्देह को समझा और उसने काश्यप से पूछा-'हे काश्यप ! तुम कहो कि तुमने कौन-सा ज्ञान प्राप्त किया है, जिसके कारण तुमने अपना अग्निहोत्र करना छोड़ दिया ?' काश्यप ने उत्तर दिया-हमने शान्ति की अवस्था देखी है और हम अग्नि-होत्र से प्रसन्न नहीं हैं। राजा यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और लाखों सेवकों के साथ गौतम का शिष्य होगया। और दूसरे दिन के लिए अपने यहाँ भोजन करने का निमन्त्रण दे गया। दूसरे दिन गौतम अपने सब शिष्यों को साथ लेकर राज- भवन में आए । मगध के निवासियों ने जब इस महान् उपदेशक को इस अवस्था में देखा तो वे बड़े प्रभावित हुए। राजा ने उसके रहने के लिए बेलीबन में एक कुञ्ज बनवा दिया और वहाँ गौतम अपने साथियों के साथ कुछ समय तक रहा । इधर उसने दो प्रसिद्ध पुरुषों को जो कि सारीपुत्र और मोग्गलायन के नाम से विख्यात थे, अपना शिष्य बनाया। बुद्ध और उसके शिष्य उपाकाल में उठते और नित्य कर्म से निवृत्त होकर आध्यात्मिक वार्तालाप में लग जाते । इसके पश्चात् वह अपने शिष्यों के साथ नगर की ओर जाते ।
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