बुद्ध और बौद्ध-धर्म . . भारी साहित्य हमें इस विषय पर मिला, वहाँ भारत में-जहाँ यह महान् धर्म जन्मा और पन्द्रह-सौ वर्ष तक जीवित रहा-कुछ भी मसाला नहीं मिला !! भारत में इस प्रकार बौद्ध-संस्कृति का नाश होगया। इस भारत के बाहर के देशों से हमें जो बौद्ध साहित्य मिला है, उसके दो विभाग किये जा सकते हैं-पहला दक्षिणी बौद्ध-साहित्य और दूसरा,उत्तरी बौद्ध-साहित्य ।यह साहित्य जिस रूप में नैपाल, तिव्वत, चीन और जापान में मिला है, वह उत्तरी और जो लका और वर्मा में है, वह दक्षिणी है। उत्तरी साहित्य बहुत विकृत और नवीन है; क्योंकि उत्तर की जातियों ने ईसा की कुछ शता- ब्दियों के उपरान्त बौद्ध मत को ग्रहण किया था। चीन में बौद्ध- धर्म का प्रचार ईसा की पहली शताब्दि में हुआ, और चौथी शताब्दि में यह राजधर्म बना। जापान में पाँचवीं शताब्दि में, और तिब्बत में, सातवीं शताब्दि में बौद्ध-धर्म का प्रचार हुआ, इसीलिए तिब्बत आदि बौद्ध-धर्म से बहुत दूर हैं, और उसमें कुछ ऐसे विधान हैं, जो बुद्ध को ज्ञात भी नहीं थे। इसके विपरीत दक्षिणी बौद्ध-मत से हमारे लिए बहुत अमूल्य साहित्य प्राप्त होता है । दक्षिणीय बौद्धों की पवित्र पुस्तकें जो. 'त्रिपिटक' कहाती हैं, और जो लंका में प्राप्त हुई हैं, वे वही नियम हैं जो ईसा से २४२ वर्ष पूर्व निश्चय हो चुके हैं। अब से ३० वर्ष पूर्व यह माना जाता था कि बुद्ध की मृत्यु ईसा से ५४३ वर्ष पूर्व हुई थो; परन्तु अब यह निर्णय होगया है कि ,
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