4 ११७ बौद्ध-धर्म-साहित्य यूरोपियनों से दूर रहता और सब समय अध्ययन में लगाता था। सन् १८३२ में वह कलकत्ते आया, और डॉ. विल्सन और जेम्स प्रिंसेप से मिला । वहाँ बहुत समय रहकर वह १८४२ में तिब्बत को चला; परन्तु मार्ग ही में दार्जिलिंग में, ज्वर से उसका देहान्त होगया । वंगाल की एशियाटिक सोसाइटी ने दार्जिलिंग में, उसकी कब पर एक स्मारक बनवाया है। इस महापुरुष ने बौद्ध-साहित्य- सम्बन्धी जो कार्य किया है, वह सब वृत्तान्त एशियाटिक रिसर्चेस के बीसवें भाग में दिया गया है। इसके पश्चात् तिब्बत से बहुत- कुछ मसाला मिला है। चीन से बौद्ध ग्रन्थों के संग्रह करने का श्रेय श्रद्धेय सोम्युएल वील साहब को है। यह संग्रह जापान के राजदूत ने इगलैंड भेज दिया था, जो 'दी सेक्रेट टीचिंग आफ दी थी जर्स' के नाम से प्रसिद्ध है। इस संग्रह में लगभग २००० ग्रन्थ हैं। उसमें वे सब ग्रन्थ हैं, जो भिन्न-भिन्न शताब्दियों में भारत से चीन गये थे। इन पर चीन के पुजारियों की टिप्पणियाँ हैं। इन पुस्तकों का प्रचार लङ्गा में, ईसा से २४२ वर्ष पूर्व किया गया था, और वे उसी रूप में, पाली-भाषा में अबतक उपस्थित हैं। इनका मनन टर्नर फासवाल, ओडेन वर्ग,चिल्डर्स, स्पेन्स हार्डी, राइज डेविड्स, मेक्समूलर, बेबर आदि विद्वानों ने किया है। वर्मा से भी वौद्ध-साहित्य का बड़ा मसाला मिला है। विगेन्डेन्ट साहब ने सन् १८६८ में यह मसाला प्रकट किया था, परन्तु यह कितने आश्चर्य का विषय है कि भारतके आसपास कि जहाँसे इतना ,
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