बुद्ध और बौद्ध-धर्म , सन् १९३३ से १८४३ तक हडसन साहब नेपाल के रेजीडेएट रहे। उन्होंने बहुत-से बौद्ध-धर्म के हस्त-लिखित ग्रन्थ संगृहीत किये। उन्होंने बंगाल एशियाटिक सोसाइटी को ५५ बस्ते, लन्दन की रॉचल एशियाटिक सोसाइटी को८५ वस्ते, इण्डिया ऑफिस लाइ- ब्रेरी को ३० वत्ते, ऑक्सफोर्ड की बौदलियन लाइब्रेरी को ७ बस्ते और पैरिस की सोसाइटी एशियाटिक वा वर्गफ साहब को १७४ वत्ते भेजे। इन मृतक ग्रंथों में यूजीनवर्नाफ़ साहब ने जीवन डाला। और अनवरत परिश्रम से उन्हें ठीक करके उन ग्रंथों को यूरोप के विद्वानों के सम्मुख रखा। उन्होंने एक ग्रंथ लिखा, जिसका नाम 'इंट्रोडक्शन टू दी हिस्ट्री ऑफ़ इण्डियन वुधिज्म' था, और जो सन् १८४४ में छपा था, जो इस विषय का पहला वैज्ञानिक ग्रंथ था। इसके पश्चात् तिब्बत में हंगेरिया के विद्वान् पण्डित एलेक्जेण्डर सोमा- कारोसी ने बहुत-से वस्त्रों का पता लगाया । यह विद्वान् सन् १८२० में बुखारेस्ट से बिना धन और मित्र के निकला । स्थल में पैदल और जल में नौका पर वह बगदाद आया । वहाँ से तेहरान और तेहरान से एक काफिले के साथ खुरासान होते हुए बुखारा पहुँचा। सन् १८२२ में वह कावुल आया, वहाँ से लाहौर और काश्मीर के रास्ते लदाख पहुँचा, बहाँ बहुत दिन रहा । सन् १८३१ में वह शिमला में था । जहाँ वह एक मोटे नीले कपड़े का ढीला-ढाला अङ्गा जोकि एड़ियों तक लटकता था, और एक टोपी उसी कपड़े की पहनता था। उसकी डाढ़ी कुछ सफेद थी। वह
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