बौद्धों के धर्म-साम्राज्य का विस्तार इनकी रक्षा के लिए कफिशा के राजा ने कुछ पुजारी नियत कर दिये थे। जिस स्तूप में बुद्ध के शरीर की हड्डी, दॉत आदि रखे हुए थे, उसके दर्शन करनेवाले यात्री से एक मोहर ली जाती थी। और जो मोम आदि पर इनकी नकल लेना चाहता था, उससे चार अशर्फियों ली जाती थीं। लेकिन इतने दाम देकर भी दर्श- नार्थियों की भीड़ लगी ही रहती थी। ह्यानसाँग ने लिखा है-हिदा के स्तूप में एक बहुत बड़े कीमती सिंहासन पर ये चीजें रक्खी हुई थीं। आज वह वैभवशाली हिदा नगर एक छोटा-सा गाँव रह गया है। संघारामों की बिहारों की और स्तूपों की इमारतें नष्ट होकर रेती के टीलों में परिवर्तित होगई हैं। वहाँ बालू-मिट्टी के सिवा कुछ नहीं है । स्तूपों का और मूर्तियों का वहाँ चिह्न-मात्र तक नहीं है। बहुत ढूंढने पर कहीं-कहीं रंग का काम मिल जाता है। हुएनसाँग के समय में कन्धार में, बौद्ध-धर्म नष्टप्राय हो रहा था । कन्धार की राजधानी पेशावर थी। इसे पुष्पपुर भी कहते थे। पुष्पपुर और हिदा । ये दोनों राज्य कफिशा के राजेश्वर क्षत्रिय राजा के थे । हर साल वह १८ फीट ऊंची चाँदी की मूर्ति करवाकर उसकाजलूस निकलवाता था।जलूस के साथ-ही-साथ 'मोक्ष महा- परिषद्' नाम की एक सभा का भी अधिवेशन हुआ करता था। इस अवसर पर राजा बहुत-कुछ दान दिया करता था। यहाँपर छः हज़ार मिनु रहा करते थे। बौद्धों के स्तूप और बिहारों के आस-पास हिन्दुओं के भी
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