पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१०७

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म १०४ , " और बौद्ध-ग्रन्थ भी भेजे । इस समय तक जापान को वौद्ध-धर्म का पता नहीं था। इस समय जो-भी चेष्टायें जापान में बौद्ध-धर्म के प्रचार में की गयीं, उनका बड़ा भारी विरोध हुआ; क्योंकि वहाँ के प्राचीन सिन्टो-धर्म के माननेवाले बड़े कट्टर थे। जापान के राजा शोटो कुदेशी ने बौद्ध-धर्म के प्रचार में बड़ी भारी सहायता की, यहाँतक कि उसकी गणना चौद्ध-भिक्षुओं में होने लगी। बौद्ध-भिक्षुओं ने एक बड़ी भारी चतुराई से काम लिया। उन्होंने सेन्टों के देवताओं को भी बौद्ध-धर्म में सम्मिलित कर लिया और उनकी पूजा करने लगे। इससे सिन्टो-धर्म वालों के विरोध एकदम कम होगये और वे सन्तुष्ट होगये । यह युक्ति कोबोदेशी नामक एक बौद्ध-मिनु ने निकाली थी, इसलिए वहाँ के लोग आज भी उसे देवता के समान पूजते हैं । इस तरह जापान के रिवाज और सभ्यता पर बौद्ध-धर्म का प्रभाव स्थायी होगया। १६ वीं शताब्दि तक राजाओं की तरफ से बौद्ध धर्म को पुरस्कृत किया जाता था , पर इसी समय जापान में एक बड़ी भारी राज्य- क्रान्ति हुई, जिससे राजा को बौद्ध-धर्म के प्रति उदासीन रहना पड़ा। पश्चिमी सभ्यता ने धर्म पर राजनीति का प्रभाव बढ़ा दिया, परन्तु थोड़े ही वर्षों बाद, उन्हें यह मालूम होगया कि पाश्चात्य- सभ्यता का अन्ध अनुकरण करना अपने आपको एक घात में डालना है, तो उन्होंने फिर बौद्ध-धर्म का प्रचार करना शुरू किया और उसके साथ-ही-साथ अपने सिन्टो-धर्म तथा कान्फ्युशियम का भी प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया।