बुद्ध और चौद्ध-धर्म ६८ के साथ इसकी स्थापना हुई, जिसे देखने भिन्न-भिन्न स्थानों से सैकड़ों यात्री बाज भी जाते हैं। जब बारहवीं शताब्दि में पराक्रम बाहुराजा सिंहल की गद्दी पर बैठा, तो एक बार उसने बौद्ध-धर्म का काम फिर से अपने हाथ में बड़े जोर-शोर से लिया, लेकिन ईसा के बाद सोलहवीं शताब्दि में पोर्चुगीज अंग्रेज़ आदि वहाँ आने लगे, तब से वहाँ बौद्ध-धर्म का ह्रास होने लगा, और वह आजतक जारी है। सन् अठारह में जो सीलोन की मनुष्य-गणना हुई थी, उममें कुल EEEE मनुष्य बौद्ध थे। और इसके बाद सन् १६ में सात हजार ही रह गए थे । इतना होने पर भी लंका में बौद्ध-धर्म की काफी चर्चा है और बौद्ध-धर्म के प्रति काफी मान है। हमने वतलाया है कि वर्मा में बुद्धघोष ने बौद्ध-धर्म का काफी प्रचार किया था। अब भी तमाम बर्मा बौद्ध-धर्म को माननेवाला है। बुद्धघोप के बनाये हुए ग्रन्थ और भाष्य बर्मा में बहुत मान- नीय दृष्टि से देखे जाते हैं। वहाँ के भिनु अब भी सदाचारी और विद्वान् होते हैं । श्याम, कम्बोडिया आदि रियासतें जो पूर्वी प्रदेशों में हैं, वहाँ अब भी बौद्ध-धर्म का काफी प्रचार है। प्राचीन काल में वहाँ के निवासी जंगली थे, लेकिन जब भारतवर्ष के लोग वहाँ व्यापार आदि के लिए जाने लगे तो उनमें भी सभ्यता पाने लगी। इसके बाद बर्मा के बौद्धों ने वहाँ जाकर बौद्ध-धर्म का प्रचार किया। वहाँ बौद्ध-धर्म का प्रचार ईसा की सातवीं शताब्दि के वाद हुआ। कम्बोडिया में जो शिलालेख मिले हैं वह आठवीं और नौवीं शताब्दि के बाद के हैं। श्याम एक ऐसा देश है कि जहाँ चौद्ध-धर्म
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