६७ बौद्धों के धर्म-साम्राज्य का विस्तार बार आक्रमण करके उसको विजय किया। लेकिन ईसा के लग- भग ८० वर्ष पहिले उन्हें वहाँ से निकाल दिया गया। और लग- भग इसी समय के अन्दर त्रिपिटक का साहित्य जो अवतक केवल मौखिक और कंठाग्र था, लिखा गया । इसी काल में युद्धघोप जो बौद्ध-धर्म का बड़ा भारी विद्वान् था, और जिसे बौद्धों का सायना- चार्य कहना चाहिए और जो मगध का रहनेवाला ब्राह्मण था, लक्का गया और वहाँ जाकर उसने वहाँ की भाषा में महान ग्रंथ लिखे । लगभग ४५० ई० में वह वर्मा गया और वहाँ उसने चौद्ध- धर्म का खूब प्रचार और विस्तार किया। श्याम में ६३८ ई० में चौद्ध-धर्म का प्रचार हुआ। जावा में भी लगभग इसी समय उपदेशक गये और जावा से यह धर्म सुमात्रा को गया । ये सब देश हीनयान से सम्बन्ध रखते हैं। इस समय भारतवर्ष के सुदूरपूर्व में जो द्वीप फैले हुए हैं उनमें इस समय भी बहुत से प्राचीन हिन्दू-धर्म के चिन्ह और संस्कृति पाई जाती है। चीन, जापान, बाली, माक्सिको, तिब्बत, कोरिया, जावा, सुमात्रा के प्रदेशों में हिन्दु-संस्कृति के बहुत-से लक्षण अव भी देखने को मिलते हैं। इन तमाम प्रदेशों में बौद्ध-धर्म बड़ी तेजी के साथ फैला। एक समय था जब चीन, जापान, जावा, सुमात्रा, माक्सिको, बाली, कोरिया, तिब्धत आदि टापुओं में बौद्ध-धर्म विस्तार पा गया था। मसीह को तीसरी शताब्दि में बुद्ध का एक दाँत भारतवर्ष से लक्का ले जाया गया, और इसकी राजधानी केण्डी में बड़े समारोह , .
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