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(३३)

अर्जुन खंड्यो द्वादश आँगुर मोटो तरु जब
पंद्रह आँगुर विटप छिन्न करि दियो नंद तब।
रहे तहाँ द्वै विटप खड़े ऐसे जुरि संगहि।
चमकायो करवाल कुँवर कर में अपने गहि।
दोऊ योँ बेलाग उड़े एकहि प्रहार लहि
ज्योँ के त्योँ ते खड़े जहाँ के तहाँ गए रहि।
हरषि पुकासो नंद "धार बहँकी कुमार की"।
काँपी मन में कुँवरि देखि यह बात हार की।
मरुत देव यह चरित रहे अवलोकत वा छन।
दक्षिण दिशि सोँ प्रेरि बहायो मंद समीरन।
हरे भरे ते ऊँचे दोऊ ताल मनोहर
तुरत गिरे अरराय आय नीचे धरती पर।

फेरि तीखे तुरग चारों ने बढ़ाए जोर;
तीन फेरो कियो वा मैदान के सब ओर।
गयो कंथक दूर बढ़ि पाछे सबन को नाय।
वेग ऐसो तासु जौ लौँ फेन मुँह सों आय

गिरै धरती पै, उडै सो बीस लट्ठ प्रमान।
नंद बोल्यो "हमहुँ जीत पाय अश्व समान।
बिना फेरो तुरग कोऊ छोरि लायो जाय,
फेरि देखौ कौन वाको सकै वश में लाय"