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ऐसी छोटी बातन कारन ताहि गवैंहौँ?"
भयो "घोष सिद्धार्थ कुँवर हैँ करत निमंत्रित।
आय सातवें दिवस दिखावैं रणकौशल इत!
राजकुँवर सोँ जो चाहै सो होड़ लगावै;
जो जीतै सो यशोधरा को बरि लै जावै।"

रंगभूमि लखाति जाको दूर लौं विस्तार।
सातवें दिन प्राय पहुँचे सकल शाक्यकुमार।
कुँवरि को लै चली शिविका सजी नाना रंग।
चली मंगल गीत गावति सुंदरी बहु संग।

सुंदरी को बरन को अभिलाष मन में लाय
राजकुल को नागदत्त कुमार पहुँच्यो आय।
और आए नंद अर्जुन, दोउ परम कुलीन,
सकल युवकन के शिरोमणि समरकला-प्रवीन।

अंत कंथक नाम चपल तुरंग पै असवार,
लखि अपरिचित भीर जो हिहनात बारंबार,
आय पहुँच्यो चट तहाँ सिद्धार्थ राजकुमार
चकित चख सॉ प्रजागण दिशि लखत, करत विचार

भूपतिन सोँ भिन्न इनको खान पान निवास,
दुःख सुख मेँ करत एक समान रोदन हास।