यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२७)

सोइ अहेरी को कुमार मोकोँ तुम मानौ,
है यशोधरा सोइ चपल वनकन्या, जानौ
जन्म मरण को चक्र भयो जो लौँ नहिँ न्यारे,
आवन चाहै, रही बात जो बीच हमारे।"



रहे कुँवर को भाव लखत जो उत्सव माहीं
जाय सुनायो नृप को सब, कछु छाँड्यो नाहीं।
कैसे कुँवर विरक्त रह्यो बनि बैठो तो लौँ
सुप्रबुद्ध की यशोधरा आई नहिं जो लौँ।
पलट्यो कैसो रंग कुँवर को ज्यों सो आई;
निरखन दोऊ लगे परस्पर दीठि मिलाई।
रत्नहार देबे की सारी बात गए कहि;
रहे प्रेम सोँ एक दूसर को कैसे चहि।




शस्त्र-परीक्षा


बोल्यो भूपति बिहँसि "वस्तु हमने सो पाई
रखि लैहै जो अवसि हमारी कुँवर फँसाई।
पठै दूत अब माँगौ सो कन्या सुकुमारी;
सुप्रबुद्ध सोँ कही जाय यह बात हमारी"।
रही रीति पै शाक्यगणन में जो न सकै टरि,
बड़े घरन की बरन चहै जो कन्या सुंदरि