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बुद्ध-चरित
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प्रथम सर्ग
जन्म
दिक्पति चार अरूपलोक तर सदा विराजत,
जे या जग के बीच अटल अनुशासन साजत।
तिनके तर है तुषितलोक जहँ जीव श्रेष्ठतर
त्रिगुण-सहस-दस वर्ष वास करि जनमत भू पर।
रहे जबै या लोक बुद्ध भगवान् दयामय
जन्म चिह्न या प्रगट पाँच तिनपै अति निश्चय।
तुरत तिन्हैं पहिचानि देवगण ने कीनी धुनि
"जैहैं जग-कल्याण हेतु भगवान बुद्ध पुनि"।
तब बोले भगवान "जात हैं। जग-सहाय हित
अब मैं अंतिम बार; भयो बहु बार जात तित।
जन्म मरण सों रहित होयहौं मैं औ वे जन्
जे चलिहैं मम धर्म मार्ग पै ह्वै निश्चल मन।
शाक्यवंश में अवतरिहौँ हिमगिरि दक्षिण-तट,
बसति धर्मरत प्रजा जहाँ नृप न्यायी उद्भट।