(४२) . , और तो सकर्मक उत्तम पुरुष बहुवचन में (विकल्प से) या अकर्मक प्रथम पुरुष एकवचन में होता है-जैसे, हम पावा, ऊ चला। पर साहित्य की अवधी में आकारांत भूतकालिक रूपों का पच्छिमी हिंदी के समान पुरुषभेदमुक्त स्वच्छंद प्रयोग भी बराबर मिलता है, जैसे-(क) कृपानिधान राम सब जाना। (ख) रहा बालि बानर मैं जाना। (ग) का पुलहु तुम अबहुँ न जाना।-तुलसी । ठेठ अवधी में क्रिया का रूप सदा कर्ता के पुरुष ( और लिग वचन भी ) के अनुसार होता है कभी कर्म के अनुसार नहीं, अतः उत्त तोना उदाहरणों में 'जानना क्रिया के रूप बोलचाल की अवधी के अनुसार क्रमशः 'जानिन', 'जान्याँ', और 'जान्यो' होंगे। भूतकालिक रूपों में जहाँ खड़ी बोली में अंत में 'या' होता है वहाँ अवधी में 'वा' होता है-जैसे, अावा, लावा, बनावा । 'जाना', 'होना' के भूतकाल के रूप 'व' निकाल कर भी होते हैं-जैसे, 'गा', 'भा'। भूतकालिक क्रिया के सर्वनाम कर्ता के प्रयोग में दोनों प्रथों में एक विलक्षणता देखने में आती है। अकर्मक के कर्ता के रूप तो पच्छिमी जो, सो, को मिलते हैं, जैसे, भयउ सो कुंभकरन बलधामा; पर सकर्मक के कर्ता के रूप केहि, जेहि, तेहि या केइ, जेइ, तेइ (बहु० व. किन, जिन, तिन) मिलते हैं और उनकी क्रियाओं के लिंग वचन कर्म के अनुमार (जैसा पच्छि- मी हिदी में होता है) होते हैं जो अवधी की चाल के विरुद्ध है।
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