(३५) विष घोरिये जू ।-घनानंद । (ग) जो कछु है सुख संपति सौंज सो नैसुक ही हसि देन में पैये।-धनानंद। 'ए' निकाल कर और वर्तमान का चिह्न 'त' लगाकर भी इसका प्रयोग हुआ "कहाचतुराई ठानियत प्राणप्यारी, तेरोमान जानियत रूखे मुँह मुसकान सों।"-मतिराम । उत्तम पुरुष के साथ संभाव्य भविष्यत् काल का उदाहरण-- (क) ज्ञान निराश कहा लै कीजै?—सूर । (ख) नेकु निहारे कलंक लगै यहि गाँव बसे कहु कैसक जीजै । है बनमाल हिये लगिये अरु है मुरली अधरा- रस पीजै। मतिराम 'दीजिए', 'कीजिए' का जैसा पुराना प्रयोग ऊपर दिखाया गया है वैसे ही पुराने कुछ और भी प्रयोग कवियों ने किए हैं। अपभ्रंश प्राकृत के जो अवतरण प्रारंभ में दिए गए हैं उनमें भूत (कृदंत) के 'मारिअ', 'चलिअ', 'जाईय' इत्यादि रूप देखने में आते हैं। इन्हीं रूपों से पंजाबी मासा, खड़ी और अवधी-मारा; ब्रज-मारस्रो, चल्यो, जाया इत्यादि रूप बने हैं। कहीं कहीं हिंदी के कवियों ने अपभ्रंश के पुराने रूप ज्यों के त्यों रख दिए हैं। केशवदासजी ने ऐसा बहुत किया है- (क) पूजि रोचन स्वच्छ अच्छत पट्ट बाँधिय भाल । (= बाँधा)
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