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( ३४ ) 7 कर्ता-(१)...(२)ने कर्म-को (कौं) करण-साँ; त संप्रदान-को (क) अपादान-तें संबंध-को अधिकरण में; मों, पै ('पर' भी)। 'यह', 'वह', 'सो', 'को', या 'कौन', और 'जो' इन सर्वनामों के रूप कारकचिह्न लगने के पहले क्रमश: 'या', 'वा', 'ता,' 'का' और 'जा' (जैसे, याने, वाको, तासों, काको, जाको,) होते हैं, अवधी के समान 'यहि, वहि, तेहि, केहि, जेहि' नहीं। अतः 'यहि को 'यहि बिधि' आदि रूप शुद्ध त्रज नहीं हैं खड़ी बोली में कीजिए, दीजिए, करिए, धरिए आदि रूप आज्ञा और विधि के हैं। 'इज्ज' और 'इजा' प्राकृत में भी मिलते हैं-जैसे, अप० पढिजहि पढ़ोयहि =हिं० पढ़ीजै, पढ़िए। ब्रजभाषा में आज्ञा और विधि के अतिरिक्त वर्तमान और भविष्यत् मैं भी चाहे कोई पुरुष हो इनका प्रयोग मिलता है। यह स्वच्छंदता प्राकृत में भी थी। हेमचंद्र ने (३-१७८) 'हो' धातु तथा और धातुओं में भी सर्व कालों के लिए इन रूपों का प्रयोग लिखा है। नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं- (क) पुंज कुंजर शुभ्र स्पंदन शोभिजै सुठि सूर ।-केशव (ख) रस प्याय के ज्याय बढ़ाय के पास बिसास में यों