(२६) , सूर ) और अवधी के समान लघ्वंत भी, जैसे, आवत, जात, भावत, सुहात। कविता में सुबीते के लिए लवंत का ही ग्रहण अधिक है। जिन्हें ब्रज और अवधी के स्वरूप का ज्ञान नहीं होता वे 'जात' को भी 'जावतः लिख जाते हैं। खड़ी बोली में साधारण क्रिया का केवल एक ही रूप 'ना' से अंत होनेवाला (जैसे, आना, जाना, करना) होता है पर व्रजभाषा में तीन रूप होते हैं-एक तो 'नो' से अंत होनेवाला, जैसे, आवनो, करना, लेनो, देनो ; दूसरा 'न' से अंत होनेवाला , जैसे, आवन, जान, लेन, देन ; तीसरा 'बो' से अंत होनेवाला जैसे, आयबो, करिबो, दैबो या लैबो इत्यादि । करना, देना और लेना के 'कीबो' 'दीबो और 'लीबो' रूप भी होते हैं। ब्रज के तीनों रूपों में से कारक के चिह्न पहले रूप ( पावनो, जानो) में नहीं लगते पिछले दो रूपों में ही लगते हैं-जैसे, प्रावन को, जान को, दैबे को इत्यादि । शुद्ध अवधी कारक चिह्न लगने पर साधारण क्रिया का रूप वर्तमान तिङन्त का हो जाता है, जैसे, आवइ के, जाइ के, आवइ में, जाइ में अथवा आवइ काँ, जाइ काँ, आवइ माँ, जाइ माँ । उ०—जात पवनसुत देवन देखा। जानइ कहँ बल बुद्धि विसेखा। सुरसा नाम अहिन कै माता । पठइन आइ कही तेइ बाता।—तुलसी। पूरबी या शुद्ध अवधी में साधारण क्रिया के अंत में 'ब' रहता है जैसे आउब, जाब, करब, हँसव इत्यादि । इस 'ब' .
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