ओकारांत होते हैं जैसे, घोड़ो, फेरो, झगड़ो, ऐसा, जैसो, वैसो, कैसो, छोटो, बड़ो, खोटो, खरो, भलो, नीको, थोरो, गहरो, दूनो, चौगुनो, साँवरो, गोरो, प्यारो, ऊँचो, नीचो, आपनो, मेरो, तेरो, हमारो, तुम्हारो इत्यादि । इसी प्रकार प्राकारांत साधारण क्रियाएँ और भूतकालिक कृदंव भी ओकारांत होते हैं, जैसे, भावनो, आयबो, करनो, देनो, दैबो, दोबो, ठाढ़ो, बैठो, उठो, आया, गयो, चल्यो, खायो इत्यादि । पर अवधी का कुछ लध्वंत पदों की ओर झुकाव है जिससे लिंगभेद का भी कुछ निराकरण हो जाता है। लिंगभेद से अरुचि अवधी ही से कुछ कुछ आरंभ हो जाती है । अस, जस, तस, कस, छोट, बड़, खोट, खर, भल, नीक, थोर, गहिर, दून, चौगुन, साँवर, गोर, पियार, ऊँच, नीच इत्यादि विशेषण; आपन, मोर, तोर, हमार तुम्हार सर्वनाम और केर, कर, सन तथा पुरानी भाषा के कहँ, महँ, पहँ कारक के चिह्न इस प्रवृत्ति के उदाहरण हैं। साधारण क्रिया के रूप भी अवधी में लध्वंत ही होते हैं जैसे, आउब, जाब, करब, हँसब इत्यादि। यद्यपि खड़ी बोली के समान अवधी में भूतकालिक कृदंत आका- रांत होते हैं पर कुछ अकर्मक कृदंत विकल्प से लध्वंत भी होते हैं, जैसे, ठाढ़, बैठ, आय, गय;. उ०-बैठ हैं: (क) बैठ महाजन सिंहलदीपी। —जायसी (ल) पाट बैठि रह किए सिंगारू। —जायसी
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