या विधि सेठन ने सारी कहि कथा सुनाई।
यशोधरा ने भारी तिनकी करी बिदाई।
कंचन रत्न भराय थार सम्मुख धरवायो।
चलत चलत यह पूछन हित पुनि तिन्हैं बुलायो
"कौन मार्ग धरि केते दिन में ऐहैँ प्यारे?"
फिरि कै दोऊ सेठ बोलि यह बचन सिधारे-
"या पुर के प्राचीरन सोँ, हे देवि! गुनत हम,
परत राजगृह नगर साठ योजन तें नहिं कम।
आवत तहँ सोँ सुगम मार्ग करि पार पहारन,
सोन नदी के तीर तीर लै कढ़त कछारन।
चलत शकट के बैल हमारे आठ कोस नित,
एक मास में वाँ साँ चलि के प्रावत हैं इत।"
परी नृप के कान में जब बात यह सब जाय
अश्वचालन में चतुर सामंत नौ बुलवाय
यह सँदेसो कहि पठायो अलग अलग सप्रीति-
"बिन तिहारे गए कलपत सात वत्सर बीति।
रह्यों निशि दिन खोज में सब ओर दूत पठाय,
चिता पै अब चढ़न के दिन गए हैं नियराय।
विनय यातें करत हौं अब बोलि बारंबार,
जहँ तिहारो सबै कछु तहँ आय जाव कुमार।
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